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दैनिक जीत समाचार 04 अप्रैल (चीफ ब्यूरो )

दिग्गज अभिनेता मनोज कुमार का बीते दिन मुंबई में निधन हो गया। उन्होंने ‘पूरब और पश्चिम’, ‘रोटी कपड़ा और मकान’ जैसी फिल्मों में उभरते भारत की तस्वीर से लेकर विभाजन के दर्द तक को बखूबी बयां किया। दादा साहब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित अभिनेता मनोज कुमार ने एक बार कहा था, “मैं तो एक साधारण नागरिक हूं, लेकिन देशवासियों ने भारत कुमार का नाम देकर मुझ पर बड़ा उपकार किया है। भारत का यह जो ताज मुझे दिया गया है, उसे व्यक्तिगत जीवन में निभाना बहुत बड़ी जिम्मेदारी है।” खुद को साधारण नागरिक बताने वाले मनोज कुमार का असाधारण व्यक्तित्व न सिर्फ फिल्म जगत, बल्कि आम लोगों को भी हमेशा प्रेरित करता रहा है। ‘शहीद’, ‘क्रांति’ और ‘उपकार’ जैसी फिल्में आज भी लोगों में देशभक्ति का जोश जगा देती हैं।मनोज कुमार का जन्म 24 जुलाई, 1937 को अविभाजित भारत के एबटाबाद शहर (अब पाकिस्तान) में एक पंजाबी हिंदू परिवार में हुआ था और उस समय उनका नाम हरिकिशन गिरि गोस्वामी रखा गया था। विभाजन के समय उनका परिवार पाकिस्तान छोड़कर भारत आ गया और उन्होंने कुछ माह दिल्ली के शरणार्थी कैंप में भी गुजारे। 1957 में फिल्म ‘फैशन’ में एक छोटी-सी भूमिका के साथ उन्होंने रुपहले परदे पर कदम रखा। फिर सहारा (1958), चांद (1959) और हनीमून (1960) जैसी फिल्मों में दिखे, लेकिन कोई खास कमाल नहीं दिखा सके। 1965 में आई उनकी देशभक्ति फिल्म ‘शहीद’ न केवल बॉक्स ऑफिस पर हिट रही, बल्कि इसने आलोचकों को भी जवाब दिया। तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री से भी उनको प्रशंसा मिली।

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